आयुर्वेद | Ayurveda in Hindi

संस्कृत शब्द आयुर्वेद (Ayurveda) दो शब्दों से मिल कर बना है।

आयु और वेद

आयु माने जीवन और वेद माने ज्ञान, जिस शास्त्र को पढ़ने से जीवन (आयुष्य) के बारे ज्ञान प्राप्त होता है उसे आयुर्वेद कहा गया है। जेसे बारिश होने से पहले बादल आते है उसी तरह सारे जीव के उत्पन्न होने से पहले परमपिता ब्रह्मा ने आयुर्वेद की उत्पत्ति की ताकि सारे जीव की रक्षा हो शके और दिर्धजीवन जी शके ।

आयुर्वेद(Ayurveda) मानव शरीर के सभी प्रकार के रोगों को जड़ से दूर करने की सबसे प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, आयुर्वेद न केवल रोगों को ठीक करने का विज्ञान है बल्कि स्वस्थ जीवन जीने का भी पूरा विज्ञान है। शरीर को स्वस्थ और बीमारियो से मुक्त रखना ही आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त है।

आयुर्वेद | Ayurveda in Hindi

आयुर्वेद के जनक | Father of Ayurveda 

आयुर्वेद (Ayurveda) के जनक भगवान धन्वंतरि को कहा गया है । एक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक घटना पृथ्वी लोक पर हुई जिसे हम समुद्र मंथन के नाम से जानते है। समुद्र मंथन हिन्दू धर्म की एक पौराणिक कथा है, यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में उसका उल्लेख है. भगवान धन्वंतरि का अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था, शरद  पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था, इसीकारण से दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का अवतरण धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।

हिन्दू मान्यता के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद प्रवर्तन किया, इस कारण भगवान् विष्णु के सामान ही इनकी चार भुजाएं थीं , ऊपर की दोनों भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किये हुए थे जबकि नीचे की दो भुजाओं में से एक में जलूका और औषधि तथा दूसरे में अमृत कलश लिए हुए थे |

आचार्य चरक का आयुर्वेद (Ayurveda) में बहुत ही बड़ा योगदान है, उन्होंने आयुर्वेदिक संस्कृति की कला को विकसित किया है और उनकी कृति ‘चरक संहिता’ को आयुर्वेद का विश्वकोश माना गया है, जिसमे आचार्य चरक ने मानव शरीर रचना विज्ञान, भ्रूणविज्ञान, फार्माकोलॉजी, रक्त परिसंचरण और मधुमेह, तपेदिक, हृदय रोग आदि जैसी बीमारियों के बारे में बहुत विस्तार से बताया है इसीलिए आचार्य चरक को चिकित्सा के पिता(Father of Medicine) के नाम से जाना जाता है।

आयुर्वेद का इतिहास | History of Ayurveda 

आयुर्वेद भारत वर्ष के प्राचीन ग्रंथो मे से एक है, एसा माना जाता है की आयुर्वेद की उत्पत्ति सृष्टि उत्पत्ति के समय की है, आयुर्वेद का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारों वेद मे किया गया है लेकिन इन मे से अर्थववेद को आयुर्वेद का उपवेद  माना गया है।

आयुर्वेद का ज्ञान ब्रह्माजी ने सबसे पहले उनके मानसपुत्र प्रजापति दक्ष को दिया, दक्ष ने अश्विनीकुमारों को दिया, अश्विनीकुमारो ने देवराज इंद्र को दिया और देवराज इंद्रा ने धन्वंतरि को दिया इस तरह ये ज्ञान कई हजारों वर्षों तक एक मौखिक परंपरा में निपुण गुरुओं से उनके शिष्यों को पढ़ाया गया था।

रामायण मे भी अनेक प्रकार की चिकित्सा और औषधियो का उल्लेख पाया गया है, जब लक्ष्मणजी पर रावणपुत्र मेधनाद ने शक्तिबाण का प्रहार करके उन्हे मूर्छित कर दिया था तब वैधराज सुषेण ने हनुमानजी को संजीवनी नामकी औषधि(जड़ीबूटी) लाने के लिए हिमालय पर्वत पर भेजा था और इसी संजीवनी औषिधि से वेधराज सुषेण ने लक्ष्मणजी को सजीवन किया था ।

सोऽयमायुर्वेदः शाश्‍वतो निर्दिश्‍यते अनादित्‍वात् स्‍वभावसंसिद्ध-लक्षणत्‍वात्
                                                                                                         – चरक संहिता
अर्थात
आयुर्वेद अनादि और स्वभावसिद्ध होनेसे नित्य है ।

आयुर्वेद का वर्तमान ज्ञान ‘ बृहत त्रयी ‘ नाम के तीन महान ग्रंथ पर आधारित है,  चरकसंहिता, सुश्रुतः संहिता और अष्ठांग ह्रदय। इन ग्रंथ के ज़रिये आजका आयुर्वेदिक विज्ञानं विकसित हुवा है।

आयुर्वेद बहुत ही प्राचीन और विशाल ग्रंथ है इसमे सभी तरह के जीव के लिये इलाज बताया गया है, यह सिर्फ मनुष्यो के लिए ही सीमित नहीं है, जीतने भी प्राणी(जानवर) है उनके लिए पाश्वयुर्ववेद (पशु आयुर्वेद ) और वृक्षयुर्वेद (वृक्ष आयुर्वेद ) का भी वर्णन किया गया है,

आयुर्वेद में त्रिदोष | Tridosha in Ayurveda 

आयुर्वेद मे शरीर के तीन गुण या तीन तत्व बताए गए है और सारा आयुर्वेद यह तीन गुण पर ही काम करता है, इसके अनुसार शरीर का स्वास्थ्य इन तीन गुण पर सबसे ज्यादा निर्भर है।

  • १ वात
  • पित्त
  • कफ

ये तीनों शरीर मे संतुलित अवस्था मे हो तो ऐसे शरीर को स्वस्थ शरीर कह शकते है, अगर इन तीनों के बीच संतुलन बिगड़ता है तो फिर शरीर मे रोग उत्पन्न होते है और इस वजह से इसे दोष कहते है।

यह दोष मुख्य तीन दोष से होता है इसीलिए इसे त्रिदोष कहा गया है।

आयुर्वेद की शाखाएं | Branches of Ayurveda 

आयुर्वेद की आठ प्रमुख शाखाएं हैं

अष्टांग आयुर्वेद या आयुर्वेद की आठ शाखाओं के रूप में जाना जाता है।

आयुर्वेद | Ayurveda in Hindi

आयुर्वेद का महत्व । Importance of Ayurveda

आप हमारा लेख स्वास्थ्य क्या है वह भी पढ़ शकते हो।

आयुर्वेद का महत्व प्राचीन समय से चला आ रहा है, यह शरीर को कुदरती रूप से ठीक करता है और उसके कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है। वर्तमान समय मे काफी लोगो ने आयुर्वेद का महत्व समजा है और आयुर्वेद मे बताए गए नियमो का पालन करके स्वस्थ हुए है ।

शरीर की कोई भी बीमारी को अगर जड़ से खतम करने की ताकत कोई रखता है तो वो हमारा आयुर्वेद है।

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